Prabhat Samgiita No. 163

Songs of New Dawn by Shri Shri Anandamurti Ji

 

मनके कोनो छोटो काजे नावते दोबो ना,

ना ना ना, नावते दोबो ना।

ध्यानेर आलोय बसिये दोबो,

करबो नोतुन धरा रचना ।।

 

भूलोक द्युलोक आमारि आशे,

चेये आछे रूद्ध आबेशे।

तादेर आशा पूर्ण करे,

बहाबो प्राणेर झरना।।

 

अश्रु मुछे आनाबो हासि,

कान्ना सरे बाजबे गो बाँशी।

माटिर परे आसबे सुदिन,

क्लेश-यातना कारो रबे ना।।

 

भावार्थ: 

प्रभु! मैं अपने मन को किसी छोटे, संकीर्ण और स्वार्थपूर्ण कार्य में लग कर गिरने नहीं दूँगा। अपने मन को मैं तुम्हारे ध्यान के आलोक में बैठा कर, नये विश्व का निर्माण करूँगा ।

धरती और स्वर्ग मेरी आशा में हैं और वे आवेश से भरे प्रतिक्षारत हैं। प्रभु, मैं उनकी यह आशा पूरी करके प्राणों की झरना पुनः बहा दूँगा।

लोगों के आँसुओं को पोछ कर उनके चेहरे पर मुस्कान लाऊँगा, उनका क्रन्दन अंत हो बांसुरी के मधुर बोल में बदल जायेगा। इस मिट्टी पर ऐसे अच्छे दिन आ जायेंगे प्रभु कि किसी को भी कष्ट और यातना का अनुभव नहीं होगा। यह सब प्रभु मैं तुम्हारी कृपा से करूँगा, केवल तुम्हारी कृपा से करूँगा।